Aayuttam – Ayurvedic Clinic https://aayuttam.com Thu, 10 Oct 2024 07:24:47 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.1 https://aayuttam.com/wp-content/uploads/2024/04/cropped-favicon-op-32x32.webp Aayuttam – Ayurvedic Clinic https://aayuttam.com 32 32 Prajanan प्रजनन -हेल्दी प्रेगनेंसी, हेल्दी बेबी , हेल्थी मदरहूड के लिए पंचकर्म https://aayuttam.com/blog/prajanan-%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%9c%e0%a4%a8%e0%a4%a8-%e0%a4%b9%e0%a5%87%e0%a4%b2%e0%a5%8d%e0%a4%a6%e0%a5%80-%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%97%e0%a4%a8%e0%a5%87%e0%a4%82-2/ Thu, 22 Aug 2024 17:07:05 +0000 https://aarogyamayurvedicclinic.com/?p=4007

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आज का विषय है हेल्दी प्रेगनेंसी, हेल्दी बेबी , हेल्थी मदरहूड

हेल्दी प्रेगनेंसी, हेल्दी बेबी , हेल्थी मदरहूड के लिए हमें क्या करना चाहिए?

इसके लिए एक बहुत ही अच्छा उपाय आयुर्वेद में बताया गया है। – पंचकर्म और योगा

पंचकर्म और योगा से हम हेल्दी प्रेगनेंसी, हेल्दी बेबी , हेल्थी मदरहूड हासिल कर सकते है।

पंचकर्म और योगा से हमे कैसे फायदा होगा?

पंचकर्म –

हम हर रोज हमारे घर की साफ सफाई करते है फिर भी साल में एक बार हम पूरे घर की फिरसे अच्छे से साफ सफाई करते है। कयू ? क्योंकि अगर घर के कोनो में जमी गंदगी भी निकल जाए तो कीटाणु नहीं होगे और कीटाणु नही तो बीमारियां नही। घर मे सब स्वस्थ रहेंगे। उसी तरह साल में एक बार अगर हम पंचकर्म से शरीर की शुद्धि करे तो तो साल भर शरीर में जमा हुए टॉक्सिंस(गंदगी) शरीर से  निकल जाती है और हम निरोगी रहते है।और निरोगी शरीर से ही हेल्दी प्रेगनेंसी, हेल्दी बेबी , हेल्थी मदरहूड हासिल होती है |

योगा –

आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में तनाव और स्ट्रेस हर बीमारी का महत्वपूर्ण कारण है। योगा एक ऐसा व्यायाम है कि जिसमें हम बहुत ही संथ गती से श्वास अंदर लेते है और श्वास बाहर निकालते है। इस वजह से अपना मन और शरीर शांत हो जाता है और हम निरोगी रहते हैयोगा करने से शरीर और मन का तनाव भी निकल जाता है। योगा के साथ मुद्रा करे और मंत्र कहे तो हमारे शरीर मे सकारात्मक ऊर्जा बनती है। वह भी हमे निरोगी रखने मे मदद करती है। और संतुलित शरीर और मन में ही हेल्दी प्रेगनेंसी, हेल्दी बेबी , हेल्थी मदरहूड पाई जा सकती है।

जीवनशैली में परिवर्तन

आजकल 70 टक्के बीमारियां अपने गलत जीवनशैली की वजह से होती है जैसे वबेवक्त खाना, पीना, सोना, उठाना। अगर हम जीवनशैली मे बदलाव ना करे तो आज हम निरोगी है पर बार-बार बीमार होते रहेंगे ।   

इसलिए आपको अगर हेल्दी प्रेगनेंसी, हेल्थी बेबी, हेल्थी मदारहूड चाहिए तो पहले खुद को और अपने साठीदार को निरोगी बनाए।

यह सब चीजो को ध्यान में रखकर हमारे आरोग्यम आयुर्वेदिक क्लीनिक मे हमने एक प्रोग्राम बनाया है। उसका नाम है प्रजनन।

प्रजनन

इस प्रोग्राम मे हमने पंचकर्म, योगा, मुद्रा, मंत्र, जीवनशैली मे बदलाव और विविध दवाइयां इस सब का अंतर्भाव किया है। इसकी वजह से आपका शरीर और मन संतुलित और निरोगी रहता है।

यह प्रोग्राम 15 दिन से 1 महीने का होता है। अगर आपको अच्छी स्वस्थ प्रेगनेंसी चाहिए तो प्रेगनेंसी प्लान करने से पहले (नॅच्युरल प्रेगनेंसी हो, या IUI/ IVF  हो ) उससे पहले आप यह आयुर्वेद का सुंदर वरदान पंचकर्म इसका जरूर उपयोग कीजिए । प्रजनन प्रोग्राम का लाभ उठाए।

धन्यवाद.

 
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जानिए बस्ती पंचकर्म के पीछेका शास्त्रीय विचार क्या है? Blog – 59 https://aayuttam.com/blog/%e0%a4%9c%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a4%bf%e0%a4%8f-%e0%a4%ac%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%a4%e0%a5%80-%e0%a4%aa%e0%a4%82%e0%a4%9a%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%ae-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%aa%e0%a5%80/ Fri, 09 Aug 2024 04:13:37 +0000 https://aarogyamayurvedicclinic.com/?p=3990 नमस्कार

पिछले ब्लॉग मे हमने पंचकर्म, उसके प्रकार वमन और विरेचन कर्म इनके बारे में अधिक जानकारी ली थी | इस ब्लॉग मे हम बस्ती कर्म के बारे मे जानकारी लेंगे |

लोगों को बस्ती कर्म याने पेट साफ करने वाली दवा इतना ही पता होता है| पेट साफ हो गया और अच्छा लगने लगता है।

कया बस्ती कर्म का इतना ही उपयोग है ? – नही | बस्ती चिकित्सा के पीछे एक बहुत महत्वपूर्ण विचार/ शास्त्र है।

आयुर्वेद में बस्ती चिकित्सा को “आधी चिकित्सा” कहा जाता है।

मतलब रुग्ण को हम सिर्फ बस्ती चिकित्सा देकर 50% ठीक कर सकते हैं | और बाकी के 50% गुण के लिए बाकी सब पंचकर्म, दवाई, जीवनशैली में बदलाव और व्यायाम की जरूरत पड़ती है। याने रुग्ण को 50% गुण सिर्फ बस्ती चिकित्सा से ही मिल जाता है।

आयुर्वेदने इसलिए बस्ती चिकित्सा को बहुत महत्वपूर्ण माना है। तो उसके पीछे का शास्त्र भी बहुत महत्वपूर्ण होगा।

चलो इस ब्लॉग में हम जानते हैं कि बस्ती कर्म के पीछे क्या शास्त्रीय विचार है?

उससे पहले हमें अपने शरीर के पचनमार्ग के बारे में थोड़ी जानकारी होना आवश्यक है।

हम जो अन्न खाते है उसपर पचन संस्कार मुंह में शुरू हो जाता है| फिर अन्न जैसे नीचे नीचे जाता है वैसे पेट, जठर, अग्न्याशय याने (stomach, liver, Pancrease) से पाचक स्त्राव उसमे मिलते है। फिर वह अन्न नीचे छोटे और बड़े आंतडो में जाता है| छोटे और बड़े आंतडोमे उस अन्न से पोषक अंशको खून में शोष लिया जाता है।

मतलब इधर एक बात पर गौर किजिए कि जो पोषक अंश खून में शोष लिया जाता है वह आतडो से होता है। और जब यह पोषक अंश खून में शोष लिया जाता है उसके बाद वह पूरे शरीर में जाकर शरीर का पोषन होता है और हमारे शरीर को ताकत मिलती है। इसी तत्व का फायदा बस्ती चिकित्सामें उन जमाने में ऋषियों ने किया।

कैसे?

दवा को ३ घंटे के पचन मार्ग से जानेकी आवश्यकता नहीं होती। इसलिए उन विद्वान ऋषियों ने बस्ती चिकित्साकी निर्मिती की ।बस्ती चिकित्सा द्वारा दवाईयां सिधा आंतडो में जाती है और मिनटोमें आंतडो से रक्त मे शोषण होती है और अपना काम शुरू कर देती है।

मतलब उन दिनो मे बस्ती चिकित्सा यह इमरजेंसी सर्विस याने अत्यायिक चिकित्सा होती थी।

उन ऋषियों और उनकी विद्वता को सलाम।

आप आश्चर्यचकित हो गए ना जानकर कि बस्ती चिकित्सा कितनी महत्वपूर्ण है और उसके पीछे इतना गहन शास्त्र है |

आयुर्वेद ऐसे अनेक सिद्धांतो से परिपूर्ण है क्युकि आयुर्वेद यह एक शास्त्र है। इसलिए उसके सिद्धांत समझ न आए तो आयुर्वेद के बारे में नाम रखने से पहले उस शास्त्र का अभ्यास करना चाहिए|

क्युकि आयुर्वेद के सिद्धांत सिद्ध करके अंत हुए हैं, याने यह तत्व सिद्ध हुए है और उसके आगे सिद्ध करने जैसा कुछ नही है। इसलिए आयुर्वेद के सिद्धांत इतने सालो बाद आज भी सच है | इसलिए अपने शास्त्र प्रति आदर रखो।

आयुर्वेद के सिद्धांत के बारे मे हम आनेवाले ब्लॉगस् मे लिखते रहेंगे|

अगले ब्लॉगमे हम बस्ती के प्रकार और बस्ती के बारे मे और अधिक जानकारी लेंगे|

आयुर्वेद के प्रचार के लिए यह ब्लॉग को ज्यादा से ज्यादा शेयर करे, लाइक करे|

Stay Healthy Stay Blessed

Thank you

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Science behind Basti Panchakarma – Blog – 58 https://aayuttam.com/blog/science-behind-basti-panchakarma-blog-58/ Fri, 02 Aug 2024 08:48:05 +0000 https://aarogyamayurvedicclinic.com/?p=3974 Greetings from Aayuttam Ayurveda Blog.

In our previous blog, we delved into the concept of Panchakarma, exploring its various types, including Vaman and Virechan in great detail. Today, we embark on a journey to understand Basti Chikitsa.

Commonly perceived as a treatment solely focused on bowel cleansing, Basti holds a much deeper significance in Ayurveda. It is not merely a therapy for clearing the bowels, but rather a profound science with far-reaching therapeutic benefits.

Good day, everyone. In today’s blog, we will delve into the scientific principles underlying BASTI CHIKITSA, an integral part of Ayurvedic medicine.

In Ayurveda, BASTI CHIKITSA holds a prominent position, often referred to as “half treatment.” This signifies that, in many cases, BASTI CHIKITSA alone can effectively address up to 50% of a patient’s health concerns. However, for comprehensive healing, it is often combined with other therapeutic modalities, such as medication, dietary modifications, and exercise, to achieve optimal results.

The profound significance accorded to BASTI CHIKITSA underscores its potential in promoting overall well-being and addressing various health conditions.

Before delving into the scientific principles underlying the basti treatment, it is essential to gain an overview of our digestive system.

Upon consumption, the digestion of food commences in the oral cavity. As it progresses downward into the stomach, it undergoes amalgamation with various gastric fluids and hepatic enzymes. The primary function of nutrient absorption from ingested sustenance occurs within the intestinal tract, encompassing both the large and small intestines. Subsequently, the absorbed nutrients, in conjunction with the bloodstream, are distributed throughout the entire body, thereby nourishing it.

The key point to note is that absorption occurs in the intestine. This principle was utilized by our ancient sages in developing the Basti Chikitsa.

Food requires a three-hour digestion process to be converted into a form that the body can absorb nutrients from. However, medicine does not require a 3-hour digestion process to be absorbed into the bloodstream. Therefore, in order to bypass this 3-hour process and reach the intestine directly, our sages formulated Basti Chikitsa.

In ancient times, kadhas and ghee-based medicines were administered directly into the large intestine using a BASTI YANTRA, allowing for rapid absorption into the bloodstream. This innovative approach to emergency medical treatment, known as BASTI chikitsa, held great significance.

The scientific principles underlying basti treatment are truly remarkable. Our revered sages deserve our utmost respect for pioneering such a novel and effective emergency treatment modality in those times.
All Panchakarmas and medicine of Ayurveda are backed by scientific principles. These principles are known as Siddhants.

Siddhant is derived from the words Siddha and Anth. Siddha means something that is proven, while Anth means the end. Therefore, Siddhant refers to a truth that has been proven and is considered unchangeable. The Siddhants expounded in Ayurveda are unique and represent the fundamental truths of life.

If we fail to comprehend these Siddhants, it may be due to insufficient effort in seeking detailed information, inadequate study, or a lack of intellectual capacity to grasp the concepts. However, it is erroneous to dismiss Ayurveda as unscientific. Instead, we should diligently study, investigate, and learn the science behind Ayurveda to gain a deeper understanding of its principles.

Ayurveda is a time-tested science that remains relevant and effective to this day. It is imperative that we pay due respect to Ayurveda and embark on a journey of learning and understanding its principles. I am humbly contributing my efforts to promote Ayurveda by elucidating the scientific basis behind its practices. I encourage you to join me in this endeavor.

In our upcoming blog post, we will delve into the intricacies of basti karma, exploring its various types and the associated benefits.

I invite you to follow our blog, “Treasures of Ayurveda,” for insightful and informative content on this ancient healing system.

Wishing you continued health and well-being.

Thank you for your attention.

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बस्ती पंचकर्मामागील शास्त्रीय विचार काय आहे ? – Blog – 57 https://aayuttam.com/blog/%e0%a4%ac%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%a4%e0%a5%80-%e0%a4%aa%e0%a4%82%e0%a4%9a%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%ae%e0%a4%be%e0%a4%ae%e0%a4%be%e0%a4%97%e0%a5%80%e0%a4%b2-%e0%a4%b6%e0%a4%be%e0%a4%b8%e0%a5%8d/ Fri, 26 Jul 2024 05:27:24 +0000 https://aarogyamayurvedicclinic.com/?p=3953 मागील ब्लॉग मध्ये आपण पंचकर्म, त्याचे प्रकार आणि वमन, विरेचन या कर्माबद्दल माहिती घेतली. आणि आजच्या ब्लॉग मध्ये आपण बस्ती चिकित्सा बद्दल माहिती घेणार आहोत.

बस्ती चिकित्सा म्हणजे काय ?

बस्ती चिकित्सा म्हणजे सामान्यपणे एनीमा म्हणजे पोट साफ करणारे औषध असं मानलं जात कारण पोट साफ झालं की बरं वाटतं.

पण तसे नाही आहे .

बस्ती चिकित्सेमागे खूप महत्वपूर्ण शास्त्रीय विचार आहे.

आयुर्वेदाने बस्ती चिकित्सेला “अर्धी चिकित्सा” मानली आहे. म्हणजे एखाद्या रुग्णाला बरं करण्यासाठी बस्ती चिकित्सा दिली तर ५० टक्के गुण फक्त बस्ती चिकित्सेने मिळतो आणि उरलेल्या ५० टक्के गुणासाठी इतर पंचकर्म, औषध, आहार, व्यायाम यांची योजना करावी लागते.

जर आयुर्वेदाने बस्ती चिकित्सेला इतके महत्व दिले आहे तर त्यामागील शास्त्रीय विचार अत्यंत महत्वपूर्ण असणार.

चला तर मग जाणून घेऊया बस्ती कर्मामागील शास्त्रीय विचार.

त्यासाठी पहिले आपल्याला आपल्या पचन संस्थेबद्दल थोडीशी माहिती करून घ्यावी लागणार. आहे.

आपण जे अन्न खातो त्याचे पचन तोंडात सुरू होते. त्यानंतर ते अन्न खाली पोटात म्हणजे Stomach आणि जठर म्हणजे Liver कडे जाते , या अवयवांमधून विविध स्त्राव अन्नात मिसळले जातात आणि जेव्हा ते अन्न आतड्यामध्ये जाते तेव्हा त्यातून पोषक अंश रक्तात शोषून घेतले जातात आणि मग ते पोषक अंश रक्ताद्वारे पूर्ण शरीरात जाऊन शरीराला पोषण देतात.

तर इथे महत्वाची गोष्ट लक्षात ठेवण्याची ही आहे की रक्तात जो पोषक अंश आतड्या मधून शोषला जातो . ह्याच ज्ञानाचा आयुर्वेदाने सुंदररित्या बस्ती चिकित्सेत उपयोग केलेला आहे.  त्या ऋषींना शतश: नमन. 

औषध रक्तात लगेच शोषले गेले पाहिजे.औषधाला अन्न मार्गातून जाण्याची काही आवश्यकता नसते, तीन तासांचा वेळ वाचतो. त्यामुळे आयुर्वेदात बस्ती चिकित्सेद्वारे औषध, काढे, तूप हे आतड्यामध्ये मोठ्या प्रमाणात सोडली जातात. आतड्याचे काम आहे औषध लगेच रक्तात शोषून घेणे आणि त्यामुळे सेकंदात औषध रक्तात जाऊन त्याचे काम सुरू करते .तर बस्ती म्हणजे फक्त पोट साफ करणारे औषध नाही, तर

म्हणजे बस्ती चिकित्सा ही जुन्या काळाची Emergency Services म्हणजे अत्यायिक चिकित्सा होती असे आपण म्हणू शकतो. से आज काल आपण नसेमधून मधून रक्तात लगेच औषध सोडतो तसं त्या काळी बस्ती चिकित्सेद्वारे औषध आतडयात सोडून सेकंदात ते रक्तात शोषले जात असे.

आश्चर्यचकित झाला ना .. जाणून.. कि बस्ती चिकित्सेमागे आयुर्वेदाचा इतका मोठा गहण विचार आहे.

आयुर्वेद हे एक शास्त्र आहे हे लक्षात घ्या , आपल्या बुद्धीला त्याच्या मागचे शास्त्र , सिद्धांत समजत नसतील तर त्याला नावे ठेवू नका किंवा ते चुकीच आहे असे मानू नका. त्याच्यापेक्षा त्याच्या मागे काय शास्त्रीय विचार असेल ह्याच अभ्यास करून शोध घ्या .

आपल्या आयुर्वेद शास्त्राबद्दल आदर बाळगा. कारण

आयुर्वेदिक शास्त्राचा प्रत्येक सिद्धांत = सिद्ध + अंत म्हणजे ते सत्य आहे आणि ते सत्य सिद्ध केलेले आहे आणि त्याच्या पुढे सिद्ध करण्यासाठी काही उरले नाही …..अंत आहे. त्याच्यापुढे त्याच्यात बदल नाही ह्याला सिद्धांत म्हणतात.

हा ब्लॉग जास्तीत जास्त फॉरवर्ड करा म्हणजे आयुर्वेदाच्या मागचे सिद्धांत लोकांना कळतील. हा ब्लॉग जास्तीत जास्त शेअर करा, तुमचे कमेंट कळवा आणि पुढील ब्लॉग मध्ये आपण बस्तीचीचे विविध प्रकार त्याचे उपयोग यांच्याबद्दल माहिती करून घेऊया.

Stay Healthy, Stay blessed.

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What is Panchakarma? Blog – 56 https://aayuttam.com/blog/what-is-panchakarma-blog-56/ Fri, 19 Jul 2024 10:21:54 +0000 https://aarogyamayurvedicclinic.com/?p=3926 Hello and welcome to Aayuttam Aayurvedic Clinic

Panchakarma has been a widely discussed topic recently, with varying interpretations of its meaning. Some believe it refers to massage, while others associate it with vomiting, loose motion, or a specific procedure. However, the true essence of Panchakarma remains misunderstood by many.

In this blog post, we aim to provide a comprehensive understanding of Panchakarma.

Derived from the Sanskrit words “Pancha,” meaning five, and “Karma,” meaning procedures, Panchakarma refers to a set of five purification and strengthening procedures for the body.

These five purification procedures are:

Panchakarma Procedures :

  1. Vaman: Therapeutic Emesis
  2. Virechan: Therapeutic Purgation
  3. Basti: Medicated Enema
  4. Nasya: Nasal Administration of Medication
  5. Raktmokshan: Bloodletting

Panchakarma Procedures for Strengthening the Body :

  1. Snehan: Oleation Therapy
  2. Swedan: Sudation Therapy
  3. Shirodhara: Continuous Pouring of Medicated Oil on the Forehead
  4. Nasya: Nasal Administration of Medication
  5. Basti: Medicated Enema

Nasya and basti are included in both the Karmas. Why?

Because depending on the oil, ghee, or kadha used in nasya and basti, these procedures either purify or strengthen the body.

Let’s first understand Body Purification Panchakarma.

In today’s blog, we will discuss VAMAN and VIRECHAN.

Duration: 15 Days

Vaman and Virechan Panchkarma are 15-day purification treatments that utilize the digestive system for detoxification. During these procedures, it is essential to minimize the workload of the digestive system to facilitate optimal purification.

Key Principle: Minimal Sustenance

The guiding principle for these treatments is to consume only the minimum amount of food necessary for survival. This allows the digestive system to rest and focus its energy on self-purification, much like a machine undergoing maintenance.

Example: Machine Purification

Consider a machine undergoing purification. Its primary function is temporarily suspended to allow for thorough cleaning. Similarly, when our bodies undergo purification, we must give the d…

2. PROCEDURE(VIDHI) :

Procedure means Vidhi.

Vaman and Virechan Procedure is divided into 4 part.

  • Snehapan
  • Pradhan Karma
  • Sansarjan Kram
  • Apunarbhav Chikitsa
  1. Snehapan : A Traditional Ayurvedic Treatment

    Snehapan is an Ayurvedic treatment that involves the consumption of medicated ghee. This treatment is typically administered for a period of 6 to 7 days.

    During Snehapan, the patient is given increasing amounts of medicated ghee to consume on an empty stomach each morning. The dosage starts with 4 teaspoons of ghee on the first day and gradually increases to 16 teaspoons by the end of the treatment.

    The patient is advised to consume moong dal khichdi (a preparation of rice and moong dal) throughout the day whenever they feel hungry. Warm water is the only permitted drink during this treatment.

    Snehapan is believed to liquefy the toxins in the body, promoting their elimination and improving overall health.

    Following Snehapaan, Snehan (massage) and Swedan (steam bath) are performed. Snehan and Swedan play a crucial role in the purification process, similar to how dirt is collected in one place before being discarded while cleaning a house. Snehapaan liquefies the toxins in the body, and Snehan and Swedan then facilitate the movement of these toxins from the extremities to the center of the body, allowing for their subsequent elimination. This is the significance of massage and steam in the Panchakarma procedure.

    2. Pradhan Karma:

    Following the Snehapan, Snehan, and Swedan procedures, the toxins accumulate in the center of the body. From there, we must expel them through the nearest bodily opening.

    If these toxins attempt to exit through vomiting, Kadhas are administered orally to induce vomiting. This process of eliminating toxins from the body through induced vomiting is known as Vaman.

    Conversely, if the toxins attempt to exit through loose motions, tablets are administered to induce loose motions. This process of eliminating toxins from the body through induced purgation is known as Virechana.

    3. Sansarjan Kram: Dietary Guidelines Post-Therapy

    The Sansarjan Kram, a crucial phase in the post-therapy regimen, commences on the 10th day and concludes on the 15th day. It entails a gradual reintroduction of foods, beginning with a liquid diet, progressing to semi-solid, and culminating in a regular solid diet.

    Vaman and Virechan Karma, integral components of the therapy, are akin to fasting, as they involve a restricted diet primarily consisting of khichadi. Hence, adhering to a specific dietary routine post-therapy is paramount.

    Sansarjan Kram meticulously outlines the sequence of food consumption, starting with easily digestible items and transitioning to more substantial fare. This systematic approach ensures a smooth adaptation to a regular diet.

    4. Preventive Medicine (Apunarbhav Chikitsa)

    Apunarbhav Chikitsa is a unique form of Ayurvedic medicine focused on preventive care. It aims to prevent the recurrence of diseases after undergoing Pradhan Karma (vaman and virechan). This therapy involves administering specific medications and medicated ghee for 15 days to a month to boost immunity.

    Optimal Timing for Vaman and Virechan

    For healthy individuals, Vaman Karma is recommended during Vasant Hritu (roughly March/April), while Virechan Karma is advised during Sharad Hritu (roughly September/October). However, individuals with specific diseases should consult a Vaidya for personalized guidance on the timing and suitability of these procedures.

    To determine the necessity of undergoing Vaman Karma or Virechan Karma, it is essential to seek proper consultation with a qualified Ayurvedic practitioner.

    Individuals with cough prakruti, experiencing conditions such as cough, cold, joint pain, asthma, diabetes, thyroid issues, or skin diseases like eczema or psoriasis, may benefit from Vaman Panchakarma.

    On the other hand, those with pittah prakruti, facing ailments related to pittah imbalances, including recurrent headaches, migraines, acidity, gas, constipation, infertility, or various menstrual problems, may find Virechan Panchakarma beneficial.

    Benefits of Vaman and Virechan:

    1. Body Purification : Vaman and Virechan are Ayurvedic cleansing therapies that help eliminate toxins from the body, promoting overall health and well-being.

    2. Body Strengthening : These therapies strengthen the body’s immune system, making it more resistant to diseases and infections.

    3. Apunarbhav Chikitsa : Vaman and Virechan enhance the body’s natural healing abilities, promoting rejuvenation and vitality.

    Frequency of Vaman and Virechan :

    It is recommended to consult with an Ayurvedic practitioner to determine the appropriate frequency of Vaman and Virechan based on individual health needs and constitutions. Generally, these therapies can be performed once or twice a year to maintain optimal health and well-being.

    In this blog, we will delve into the intricacies of Vaman and Virechan, two essential Ayurvedic procedures. In our subsequent blog, we will explore the concept of Basti Karma. Our Panchakarma series will encompass both body purification and strengthening techniques.

    To gain comprehensive knowledge about all Panchakarma procedures, we invite you to follow our esteemed blog, “Treasures of Ayurveda.” Should you have any queries regarding this blog, please do not hesitate to contact us at our official email address: aarogyam.ayurvedic.clinic@gmail.com. We kindly request that you extend your support by liking our blog, thereby enabling us to disseminate valuable information about Panchakarma to a wider audience.

    Wishing you continued health and well-being.

    Thank you.

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    पंचकर्म क्या है ? (Hindi Blog No- ) Blog – 55 https://aayuttam.com/blog/%e0%a4%aa%e0%a4%82%e0%a4%9a%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%ae-%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a4%be-%e0%a4%b9%e0%a5%88-hindi-blog-no-blog-55/ Fri, 12 Jul 2024 12:00:55 +0000 https://aarogyamayurvedicclinic.com/?p=3896 पंचकर्म पंचकर्म पंचकर्म…. आजकल सब जगह एक ही नाम है पंचकर्म

    कोई पंचकर्म का मतलब मसाज समझते हैं तो कोई पंचकर्म को उल्टी और जुलाबवाली दवा कहते हैं।

    तो आखिर सही अर्थ में पंचकर्म है क्या ?

    चलो जानते हैं आज के हमारे ब्लॉग में पंचकर्म क्या है?

    पंचकर्म

    पंच याने ५ और कर्म याने क्रिया।

    पंचकर्म याने ऐसी पांच क्रियाए जिन से शरीर शुद्धि होती है और शरीर को ताकत मिलती है |

    शरीर शुद्धि पंचकर्म मे समावेश होता है।

    १. वमन
    २. विरेचन
    ३. बस्ती
    ४. नस्य
    ५. रक्तमोक्षण

    • शरीर को ताकत देनेवाले पंचकर्म में समावेश होता है।
      शक्तिवर्धक पंचकर्म

      १. स्नेहन
      २. स्वेदन
      ३. शिरोधारा
      ४. नस्य
      ५. बस्ती

    नस्य और बस्ती इन कर्मोका शरीरशुद्धी पंचकर्म और शक्तिवर्धक पंचकर्म इन दोनों मे समावेश होता है क्युकि जिस प्रकार का द्रव्य इन कर्मों में इस्तेमाल होता है (जैसे जिस प्रकार का तेल, घी, काढ़ा ) उस तरह का शरीर पर असर होता है जैसे शक्तिवर्धक द्रव्य का इस्तेमाल बस्ती या नस्य मे किया तो शक्तिवर्धन होता है और अगर शरीरशुद्धी द्रव्य का उपयोग किया तो नस्य और बस्ती से शरीर शुद्धी होती है , इसलिए इन कर्मो का समावेश दोनों में होता है।

    पहले शरीरशुद्धि पंचकर्म के बारे में जानते है |

    शरीर शुद्धी पंचकर्म –

    वमन और विरेचन

    कालावधी –

    वमन और विरेचन इन पंचकर्म क्रियाओं को १५ दिन का कालावधी लगता है।

    शास्त्र –

    वमन और विरेचन इन शरीर शुद्धि कर्मोमे शरीर की पचनशक्ती को शरीरशुद्धी के लिए इस्तेमाल किया जाता है इसलिए जिंदा रहने के लिए आवश्यक हो उतना ही अन्न खाना यह मंत्र हमें कम से कम १५ दिन अपनाना पड़ता है। शरीरशुद्धि क्रिया में पचन शक्ति को पचन कर्म से आराम देकर उस पचनशक्ती को शरीर शुद्धि के लिए इस्तेमाल करना यह इसके पीछे का हेतु होता है।


    विधी– वमन और विरेचन पंचकर्म को ४ विभागों में विभाजित किया जाता है।
    १. स्नेहपान
    २. प्रधान कर्म
    ३. संसर्जन क्रम
    ४. अपुनर्भव चिकित्सा

    १. स्नेहपान

    इस विधी मे बढ़ते प्रमाण मे औषधी घी का सेवन करना होता है।

    यह विधि ५ से ६ दिन चलती है।

    इसमें सुबह खाली पेट औषधी घी का सेवन करना होता है और औषधि घी बढ़ते हुए प्रमाण में दिया जाता है, जैसे पहले दिन ४ चम्मच, दुसरे दिन ६ चम्मच फिर ८, १२, १६ चम्मच इस प्रमाण में औषधि घी को बढ़ाया जाता है। घी खाने के बाद गरम पानी पीते रहकर जब घी की डकार आना बंद हो जाए (मतलब घी हजम हो गया है )उसके बाद भूख लगे तब मूंग दाल की खिचड़ी और प्यास लगे तब गरम पानी पीना होता है।

    इस औषधि घी के सेवन से हमारे शरीर का आम (टॉक्सिंस) पतला होता हैं।

    उस के बाद स्नेहन यानी मसाज और स्वेदन याने स्टीमबाथ दी जाती है|

    स्नेहन और स्वेदन – यहा स्नेहन और स्वेदन का उद्देश शरीर का आम (टॉक्सिक्स) शरीर के मध्य मे लाना होता है| जैसे हम घर की साफ सफाई करने के बाद नीचे गिरा हुआ कचरा इकट्ठा करके फिर बाहर फेकते हैं उसी तरह जब स्नेहपान से शरीर का आम पतला होता है (टॉक्सिन लिक्विफाय होते है) तब स्नेहन और स्वेदन से वह आम शरीर के शाखाओं से मध्य में लाया जाता हैं।

    ३. संसर्जन क्रम

    यह १० दिन से लेकर १५ दिन तक करने का विधि है |

    वमन और विरेचन इन प्रधान कर्मो के दौरान सिर्फ मूंग दाल और चावल खाना होता है| मतलब यह विधी उपवास के समान ही हो जाता है| इसलिए जैसे कोई भी उपवास छोड़ते वक्त हम शुरवात में हलके पदार्थ खाना शुरू करते हैं फिर धिरे धिरे हजम करने में भारी पदार्थ खाना शुरु करते है वैसे ही वमन और विरेचन इन प्रधान कर्मो के बाद हम पहले भोजन मे हल्के पदार्थ जैसे लिक्विड याने दाल का पानी, चावल का पानी, चावल और फिर खिचड़ी ऐसे धीरे-धीरे नॉर्मल डाइइट पर आते हैं| इस क्रम को संसर्जन क्रम कहते हैं।
    संसर्जन क्रम के बाद आती हैं।

    ४. अपुनर्भव चिकित्सा

    अपुनर्भव मतलब व्याधी फिर से ना हो इसलिए की जाने वाली चिकित्सा ( Preventive treatment) इसमें प्रधान कर्म होने के बाद आगे १५ दिन औषधि और घी दिया जाता हैं जिससे प्रतिकार शक्ति बढ़ती है।

    वमन विरेचन कर्म कब करने चाहिए?

    निरोगी व्यक्ति ने वसंत ऋतु में यानी लगभग फरवरी-मार्च के दरमियान वमन कर्म और शरद ऋतु में याने लगभग सितंबर – अक्टूबर मे विरेचन कर्म करवाके लेने चाहिए।

    बीमार व्यक्ति ने पंचकर्म कब करवाना चाहिए ?

    बीमार व्यक्ति ने वैद्य की सलाह लेकर या बीमारीकी गंभीरता को ध्यान मे रखकर साल भर मे एकबार पंचकर्म करवाके लेना चाहिए।

    वमन / विरेचन कर्म मे से कौनसा कर्म किसने करवाना चाहिए ?

    अनुमान ऐसा होता है कि जिनकी प्रकृति कफ की है और जिनको कफ की बीमारियां है जैसे बार बार सर्दी होना, खासी, अस्थमा, डायबिटीज, थाइरॉइड और अलग-अलग प्रकार के त्वचा रोग जैसे एग्जिमा, सोरियासिस हो उन लोगों को वमन कर्म करवाके लेना चाहिए और जिनकी पित्त की प्रकृति है और जिन्हे पित्त की बीमारीया है जैसे मासिक धर्म की समस्या, माइग्रेन, सिरदर्द, मलबद्धता, एसिडिटी हो उन्हे विरेचन कर्म करवाकर लेना चाहिए।

    साल मे कितनी बार पंचकर्म करवा के लेना चाहिए?

    जैसे हम साल मे एक बार घर की साफ सफाई करते है उसी प्रकार साल मे एक बार पंचकर्म करवाकर लेना चाहिए।

    पंचकर्म के फायदे

    १. शरीरशुद्धि होती है |

    २. शरीर को ताकत मिलती है।

    ३. अपुनर्भव चिकित्सा – इस विधि से प्रतिकार शक्ति बढ़ती है।

    इस ब्लॉग में हमने वमन और विरेचन के बारे मे जानकारी ली। अगर आपको कोई भी शंका हो तो हमारे

    E-MAIL ID – aarogyam.ayurvedic.clinic@gmail.com पर आप हमे संपर्क कर सकते है ।

    अगले ब्लॉग मे हम बस्ती कर्म के बारे मे जानेगे।

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    पंचकर्म म्हणजे काय? (Marathi Blog No – 03) Blog – 54 https://aayuttam.com/blog/%e0%a4%aa%e0%a4%82%e0%a4%9a%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%ae-%e0%a4%ae%e0%a5%8d%e0%a4%b9%e0%a4%a3%e0%a4%9c%e0%a5%87-%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%af-marathi-blog-no-03-blog-54/ Fri, 05 Jul 2024 05:23:01 +0000 https://aarogyamayurvedicclinic.com/?p=3867 पंचकर्म, पंचकर्म, पंचकर्म….आज काल आपण सगळीकडे ऐकतो कि पंचकर्म म्हणजे तेलाने मसाज, पंचकर्म म्हणजे जुलाब, उलट्या वगैरे.

    पण पंचकर्म म्हणजे नेमके काय ?

    चला मग जाणून घेऊन आपल्या आजच्या ब्लॉग मध्ये ‘पंचकर्म म्हणजे काय ?

    पंचकर्म –

    पंच म्हणजे ५ आणि कर्म म्हणजे क्रिया.

    पंचकर्म म्हणजे अश्या ५ क्रिया ज्याने शरीराची शुद्धी होते किंवा शरीराला ताकत मिळते.

    • शरीरशुद्धी पंचकर्ममध्ये खालील गोष्टींचा समावेश होतो

    1. वमन

    2. विरेचन

    3. बस्ती

    4. नस्य

    5. रक्तमोक्षण

    • शरीराला ताकत देण्याऱ्या पंचकर्ममध्ये खालील गोष्टींचा समावेश होतो –    

    1. स्नेहन

    2. स्वेदन

    3. नस्य

    4. शिरोधारा

    5. बस्ती

    नस्य आणि बस्ती यांचा दोन्ही पंचकर्ममध्ये समावेश होतो कारण नस्य आणि बस्ती ह्या कर्मासाठी ज्या प्रकारचे तेल, तूप, काढे वापरले जातात त्यानुसार त्यांनी शरीरशुद्धी होते किंवा शरीराला ताकत मिळते हे ठरते . त्यामुळे त्यांचा दोन्ही पंचकर्मात समावेश होतो.

    पहिले जाणून घेऊया शरीरशुद्धी पंचकर्माबद्दल

    वमन व विरेचन

    कालावधी – वमन व विरेचन या शरीरशुद्धी क्रियेसाठी १५ दिवसांचा कालावधी लागतो.

    शास्त्र – या क्रियेमध्ये तुमची पचन शक्ति ही शरीरशुद्धीसाठी वापरली जाते. त्यामुळे ‘जगण्यापूरते खाणे’ हा मंत्र १५ दिवस पाळवा लागतो . म्हणजे या शरीरशुद्धी क्रियेमध्ये पचनशक्तिला त्याच्या नेहमीच्या पचनक्रियेपासून विश्रांती द्यावी लागते आणि त्या पचनशक्तिचा शरीरशुद्धीसाठी वापर करायचा असतो हा येथे हेतू असतो .

    विधी –  वमन/विरेचन विधी हा चार विभागात विभागला जातो.

    1. स्नेहपान
    2. प्रधान कर्म
    3. संसर्जन क्रम
    4. अपुनर्भव चिकित्सा

    1. स्नेहपान – वाढत्या प्रमाणात औषधी तूप सेवन करणे.

    हा विधी साधारण ५ ते ६ दिवस चालतो. ह्या क्रियेमध्ये वाढत्या प्रमाणात औंषधी तूप पिण्यास देतात . वाढत्या प्रमाणात म्हणजे पहिल्या दिवशी  ४ चमचे, दुसऱ्या दिवशी ८ चमचे मग १२, १६ असे. तूप पिल्यावर गरम पाणी पित राहणे आणि जेव्हा तूपाचे ढेकर यायचे बंद होतील, म्हणजे तूप पचले आहे. त्यानंतर तहाण लागेल तेव्हा गरम पाणी पिणे आणि भूक लागेल तेव्हा मूग आणि भाताची खिचडी खाणे हा सर्वसामान्य विधी असतो.

    या औषधी तूपामुळे आपल्या शरीरातील आम (टॉक्सिन्स) पातळ होतो.

    त्यानंतर स्नेहन म्हणजे मसाज आणि स्वेदन म्हणजे स्टीमबाथ दिली जाते .

    स्नेहन व स्वेदन-इथे स्नेहन व स्वेदनामुळे शरीरातील पातळ झालेला आम (टॉक्सिन्स) शरीराच्या मध्य भागी आणणे हा उदेशअसतो. ज्याप्रमाणे आपण घराची साफ सफाई केल्यावर कचरा खाली पडतो मग आपण तो कचरा गोळा करतो आणि नंतर बाहेर फेकतो. त्याप्रमाणे स्नेहपान क्रियेमुळे शरीरातले आम (टॉक्सिन्स) पातळ झाल्यावर स्नेहन स्वेदन कर्मामुळे सर्व आम (टॉक्सिन्स) शरीरातील मध्यभागी आणला जातो.

    2. प्रधान कर्म –

    स्नेहन आणि स्वेदनकर्म झाल्यानंतर जेव्हा हा आम (टॉक्सिन्स) उलटी द्वारे बाहेर काढला जातो तेव्हा त्या कर्मास वमन कर्म असे म्हणतात आणि जर हा आम (टॉक्सिन्स) जुलाबांद्वारे बाहेर काढला जातो तेव्हा त्या कर्मास विरेचन असे म्हणतात.

    3. संसर्जन कर्म –

    हा विधी १० व्या दिवसापासून १५ व्या दिवसापर्यंत असतो. उपवास सोडताना जसे आपण पहिले हलके अन्न खातो व नंतर हळूहळू जड अन्न खाण्यास सुरुवात करतो त्याप्रमाणे वमन आणि विरेचन या विधीत आपला एकप्रकारे उपवासच होतो. त्यामुळे प्रधान कर्मानंतर आपण हळुहळु हलके अन्न खाण्यास सुरुवात करतो जसे पहिल्या दिवशी भाताची पेज, नंतर मऊ भात, मग खिचडी, भाकरी. असे हळु हळु पचनास जड पदार्थ क्रमाने खाण्यास सुरुवात करतात म्हणून या विधीस संसर्जन क्रम असे म्हणतात .

    अपुनर्भव चिकित्सा –

    अपुनर्भव म्हणजे ‘आजार परत होऊ नये म्हणून करावयाची चिकित्सा’ म्हणजे Preventive treatment. या विधीमध्ये पंचकर्म शरीरशुद्धी झाल्यावर शरीराला ताकत देण्यासाठी व परत आजार होऊ नये म्हणून पुढे १५ दिवस औषधे ,औषधी तूप , रसायन कल्प दिले जातात , ज्यांचा सेवनाने आपली प्रतिकार शक्ती वाढते आणि आपल्याला आजार होत नाही.

    वमन आणि विरेचन कधी करावे ?

    निरोगी व्यक्तीनी वसंत ऋतु मध्ये म्हणजे फेब्रुवारी/मार्च मध्ये वमन करून घ्यावे आणि शरद ऋतुमध्ये म्हणजे सप्टेंबर /ऑक्टोबर मध्ये विरेचन कर्म करून घ्यावे.

    आजारी व्यक्तीनी पंचकर्म कधी करावे?

    ज्यांना आजार असेल त्यांनी वैद्याच्या सल्यानुसार आणि आजाराच्या गांभीर्यानुसार वर्षभरात कधीही वमन किंवा विरेचन हे कर्म करून घ्यावे.

    वमन/विरेचन कर्मापैकी कोणते कर्म कोणी करावे?

    त्यासाठी सुद्धा वैद्याचा सल्ला घेणे आवश्यक आहे.

    तरी ढोबळ मानाने कफ प्रकृतीच्या लोकांनी आणि ज्यांना कफाचे आजार आहेत जसे जुनाट सर्दी, खोकला, दमा, स्रावी त्वचारोग, स्थौल्य, थाईरॉईड, मधुमेह आदि त्यांनी वमन कर्म करून घ्यावे आणि ज्या लोकांची प्रकृती पित्ताची आहे आणि ज्यांना पित्ताचे आजार आहेत जसे डोकेदुखी, एसिडिटी, गॅसेस,पचनाचे विकार, पाळीच्या तक्रारी, त्वचारोग आदि अशा लोकांनी विरेचन कर्म करून घ्यावे .

    वर्षातून किती वेळा पंचकर्म करावे?

    घराची साफसफाई जशी आपण वर्षातून एकदा करतो त्याप्रमाणे वर्षातून एकदा वमन किंवा विरेचन कर्म आपल्या प्रकृती व आजारानुसार करवून घ्यावे.

    फायदे –

    १. शरीरशुद्धी होते.

    २. शरीराला ताकत मिळते.

    ३.अपुनर्भव चिकित्सा – या विधीमुळे आपली प्रतिकार शक्ती वाढते.

    ही वमन व विरेचनबद्दल थोडक्यात माहिती होती.तुमच्या काही शंका असतील तर तुम्ही aarogyam.ayurvedic.clinic@gmail.com वर आमच्याशी संपर्क साधू शकतात.

    पुढील ब्लॉग मध्ये आपण बस्ती कर्माबद्दल माहिती करून घेऊया .

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    मूळव्याधीवर घरगुती उपाय (Marathi Blog No – 02) – Blog – 53 https://aayuttam.com/blog/%e0%a4%ae%e0%a5%82%e0%a4%b3%e0%a4%b5%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%a7%e0%a5%80%e0%a4%b5%e0%a4%b0-%e0%a4%98%e0%a4%b0%e0%a4%97%e0%a5%81%e0%a4%a4%e0%a5%80-%e0%a4%89%e0%a4%aa%e0%a4%be%e0%a4%af-marathi/ Fri, 28 Jun 2024 09:41:45 +0000 https://aarogyamayurvedicclinic.com/?p=3845 मागच्या ब्लॉग मध्ये आपण ‘ऑक्टोबरचा आरोग्य मंत्र’ हा विषय जाणून घेतला.ऑक्टोबरच्या उन्हाळ्यात विविध प्रकारचे आजार होतात. त्यापैकी मूळव्याध हा अत्यंत त्रासदायक आणि खूप वेदनायुक्त आजार आहे.

    आजचा आपला विषय आहे  – मूळव्याध

    पहिले जाणून घेऊया मूळव्याध हा आजार कोणाला जास्त संभवतो?

    जे लोक अधिक प्रमाणात मांसाहार, तिखट पदार्थ, मसाल्याचे पदार्थ यांचे सेवन करतात आणि ज्यांना मलबद्धतेचा त्रास असतो त्या लोकांना हा आजार जास्त संभवतो.

    मूळव्याध होऊ नये म्हणून काय काळजी घ्यावी?

    १. मलबद्धता होऊ न देणे.
    २. उन्हाळ्यात निरोगी राहण्यासाठी आरोग्य मंत्राचे पालन करावे.

    ‘ऑक्टोबरचा आरोग्य मंत्र’ आहे

    पांढरे, गोड, पानीयुक्त, नारळयुक्त आणि उकडलेल्या पदार्थाचे उन्हाळ्यात अधिक सेवन करावे.

    १. पांढरा रंग हा पित्तशामक आहे. तो शीतता प्रदान करतो. त्यामुळे पांढऱ्या रंगाचे पदार्थ हे शरीरातले पित्त संतुलित ठेवतात म्हणून पांढऱ्या रंगाचे पदार्थ अधिक खावेत जसे दूध, दूधाचे पदार्थ, तूप, लोणी, ताक. उन्हाळ्यात जेवणामधे ताकाचे खूप जास्त प्रमाणात सेवन करावे कारण ताक मूळव्याधीवर खूप गुणकारी आहे.

    २.पांढऱ्या रंगाची फळे ही पित्त शमन करतात आणि पोट सुध्दा साफ ठेवतात. त्यामुळे उन्हाळ्यात पांढऱ्या रंगाच्या फळांचे अधिक सेवन करावे जसे पेरू, सफरचंद, केळी, पिअर आदि

    ३) हिरवी मिरची, आले, लसूण आणि मिरे हे जेवणात टाळावे. उन्हाळ्यात हिरवी मिरची कच्च्या स्वरूपात अधिक प्रमाणात खाण्यात आली जसे चटणी, पाणीपुरी मधे तर मूळव्याधीतून रक्‍त पडायला सुरुवात होते.

    मूळव्याधीतून पडणारे रक्त कसे थांबवावे?

    मूळव्याधीतून पडणारे रक्त थांबवण्यासाठी कांदा सालीसोबत गॅस वर भाजावा नंतर साल काढून नुस्ता कांद्याचे सेवन करावे किंवा कांद्याचे दहीसोबत सेवन करावे. या उपायाने मूळव्याधीतून पडणारे रक्त लगेचच थांबते.

    मूळव्याध झाल्यावर काय पथ्य करावे?

    १) हिरवी मिरची, आले, लसूण, मिरे यांचे सेवन पूर्णतः बंद करावे.
    २) जेवणामध्ये ताकाचे प्रमाण अधिक वाढावावे.
    ३) आठवड्यातून २-३ वेळा सुरणाच्या भाजीचे सेवन करावे.

    सुरणाची भाजी बनवण्याच्या आधी सुरण कापून ते ताकामध्ये भिजत टाकावे त्यामुळे सुरणातले क्षार ताकामध्ये विरघळतात. क्षारासोबत सुरणाच्या भाजीचे सेवन केले तर जीभ , घशाला खाज सुटणे,मुतखडा, संधिवात यासारखे आजार होण्याची संभावना असते.

    जर मूळव्याधी बरोबर आपल्याला मलबद्धता असेल तर जेवणाआधी गरम पाणी किंवा गरम दुधात एक चमचा तूप किंवा एक चमचा बदाम तेल मिसळून त्याचे सेवन करावे. याने मलबद्धता जाते, गॅसेस कमी होतात आणि मूळव्याधीच्या ठिकाणी असलेली रुक्षता व आग कमी होते.

    तसेच रोज सकाळ-संध्याकाळ एक चमचा त्रिफळा चूर्ण किंवा एक त्रिफळा गोळीचे उपाशीपोटी गरम पाण्यासोबत सेवन करावे.

    या सर्व उपायांनी मूळव्याधीच्या त्रासापासून तुम्हाला उपशय जरूर मिळेल.

    तरीही एकदा वैद्य किंवा डॉक्टरांचा सल्ला जरूर घ्या आणि आयुर्वेदाच्या पंचकर्मामधील ‘क्षारसूत्र’ या विधीमुळे मूळव्याध हा मुळातून काढता येतो त्याचा उपयोग जरूर करून घ्या.

    उन्हाळ्यातील विविध आजारांपासून वाचण्यासाठी ‘ऑक्टोबरचा आरोग्य मंत्र’ याचे पालन करा .

    Stay Healthy Stay Blessed

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    ऑक्टोबरचा आरोग्य मंत्र (Marathi Blog No – 01) Blog – 52 https://aayuttam.com/blog/%e0%a4%91%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%9f%e0%a5%8b%e0%a4%ac%e0%a4%b0%e0%a4%9a%e0%a4%be-%e0%a4%86%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%97%e0%a5%8d%e0%a4%af-%e0%a4%ae%e0%a4%82%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%b0-marathi-blog-no/ Fri, 21 Jun 2024 06:24:01 +0000 https://aarogyamayurvedicclinic.com/?p=3833 ऑक्टोबर सुरू झाला………. गरमी सुरू झाली आणि त्यासोबत सुरू झाले गरमीचे सर्व आजार जसे घामोळ्या, नाकातून रक्त येणे, पोटदुखी, डोकेदुखी, माइग्रेन , मूलव्याधि आदि

    या आजारांपासून आपण कसे वाचू शकतो?

    सणांच्या मदतीने.

    ते कसे? चला जाणून घेऊया.

    प्रत्येक सण, परंपरा या धार्मिक गोष्टिंच्या मागे शास्त्र असते. लोकांचे आरोग्य चांगले रहावे म्हणून आपल्या ऋषिंनी शास्त्र आणि धर्माची सांगड घातली आणि शास्रांचे सिद्धान्त धर्माबरोबर बसवले जेणेकरून सर्व जणांनी धर्माचे पालन केले तर शास्त्राचे पालन होईल आणि समाजातील सर्व लोक निरोगी राहतील .

    सण सुद्धा कधीही येत नाहीत. सण शास्त्रीय दृष्टीने बसवलेले असतात.

    सण ऋतुंच्या संधीला येतात. जसे उन्हाळ्याच्या आधी गणपती, हिवाळ्याच्या आधी दिवाळी. सण आपल्याला शिकवतात की पुढे येणाऱ्या ऋतुमध्ये आहार-विहार मध्ये काय बदल केल्याने आपण निरोगी राहू शकतो.

    ते कसे ते जाणन्यासाठी सणांच्या मागील शास्त्र समजून घेऊया .

    ऑक्टोबरच्या आधी गणपती सण येतो. आपल्या सगळ्यांचे आवडते गणपती बाप्पा.

    आपण कधी विचार केला आहे का कि गणपती चकली, चिवडा का नाही खात?

    कारण गणपती नंतर ऑक्टोबर ची गरमी येणार असते. ऑक्टोबर ऋतूमध्ये निरोगी राहाण्यासाठी जे योग्य आहार ते आपण गणपतीला प्रसाद म्हणून चढवतो. म्हणजे प्रत्येक सणाला सांगितलेला आहार विहार हा आपल्याला प्रतिकात्मक सांगतो की येणाऱ्या ऋतुमधे आहार विहारामधे काय बदल केल्याने आपण निरोगी राहू शकतो.ऑक्टोबरमध्ये खुप गरमी असते त्यामुळे गणपतीला प्रसाद म्हणून असे पदार्थ चढवतात जे उन्हाळ्यात आपल्याला निरोगी ठेवतील. मोदक प्रतीकात्मक सांगतो की उकडलेले पदार्थ खा म्हणजे उन्हाळ्यात तहान तहान होणार नाही , पित्त संतुलित राहिल , गरमीचे आजार होणार नाहीत. म्हणून गणपति चकली , चिवड़ा नाही खात.

    ऑक्टोबरचा आरोग्य मंत्र आहे.

    पांढरे, गोड, उकडलेले, नारळयुक्त आणि पाणीदार पदार्थांचे सेवन करावे.

    १) ऑक्टोबर मध्ये पित्त खूप भडकते आणि पांढऱ्या रंगांचे पदार्थ पित्त कमी करतात. त्यामुळे त्यांचे अधिक सेवन करावे.

    • पांढऱ्या रंगाचे पदार्थ जसे ताक, दूध, दुधाचे पदार्थ, दही, कढी, तांदूळ, नारळ
    • पांढऱ्या रंगांची फळे जसे सीताफळ, पेरू, केळी, पेअर, सफरचंद आदि

    २) मधुर रस पित्त शामक असतो म्हणजे पित्त कमी करतो म्हणून ह्या ऋतुमधे गोड़ पदार्थ खावेत.

    ३) ऑक्टोबर मध्ये गर्मी खूप असते. ह्या गरमीमध्ये जर आपण तळलेले पदार्थ खाल्ले तर पित्त वाढते आणि तहान लागते. त्यामुळे ऑक्टोबर मध्ये उकडलेल्या पदार्थांचे सेवन जास्त करावे.

    ४) जेवणामध्ये नारळाचा उपयोग जास्त करावा. नारळ पांढरा रंगाचा, गोड आणि पाणीयुक्त आहे. त्यामुळे उन्हाळ्यात याचा जेवणात अधिक प्रमाणात उपयोग केला तर पित्त संतुलित रहाते आणि शरीर निरोगी राहते. जसे नारळाचे वाटप, नारळाचे दूध, नारळाचे पाणी,नारळाचा खीस आदि

    ५) या ऋतूत गुणाने थंड असलेले पेय यांचे अधिक सेवन करावेत. कारण ऑक्टोबरच्या गरमी मुळे शरीरातून घामाद्वारे पाणी आणि क्षार अधिक प्रमाणात बाहेर निघुन जातात त्यामुळे शरीरातील पानी आणि इलेक्ट्रोलाइट चे संतुलन ठेवण्यासाठी विविध प्रकारचे सरबत थोडे मीठ घालून सेवन करावेत जसे खसबसरबत, सोलकढी , लिम्बु सरबत , उसाचा रस यांचे अधिक प्रमाणात सेवन करावे.

    अशा रीतीने शास्त्रीयदृष्ट्या आपण सणांचे पालन केले तर प्रत्येक ऋतूत आपण निरोगी राहू.

    आश्चर्यचकित झालात ना ऐकून की सणाच्यामागे सुद्धा एवढा शास्त्रीय विचार आहे. तर चला मग प्रत्येक सणाकडे आज पासून डोळसपणे बघूया.

    प्रत्येक ऋतुच्या आरोग्य मंत्राचे पालन करूया. त्याची सुरुवात ह्या ऑक्टोबर पासून ऑक्टोबरचा आरोग्य मंत्र पालुन करूया.

    Stay Healthy Stay Blessed.

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    Home Remedy For Bleeding Fissure And Piles – ONION (Home Remedy – 07) Blog – 51 https://aayuttam.com/blog/home-remedy-for-bleeding-fissure-and-piles-onion-home-remedy-07-blog-51/ Fri, 14 Jun 2024 11:52:32 +0000 https://aarogyamayurvedicclinic.com/?p=3813 Today’s topic is Fissure and Piles.

    Fissure and Piles are common and painful conditions that can significantly impact daily life. Bleeding from either condition can further compound the discomfort and lead to significant weakness.

    It is important to understand the risk factors associated with Fissure and Piles. Individuals who consume spicy or non-vegetarian foods, as well as those who experience constipation, are more likely to develop these conditions.

    Prevention is key in managing Fissure and Piles.

    1) Prevent constipation.

    2) Adhere to the “HEALTH MANTRA” for the summer season.

    The link to the HEALTH MANTRA video titled “Immunity booster for October – Coconut” is provided below. Please watch the video.

    The ‘HEALTH MANTRA’ for summer is:

    “Consume sweet, white, watery, coconut, and boiled foods to prevent summer diseases.”

    What to eat?

    • Eat food which is white in colour like rice, coconut etc.
    • Eat white fruits like apple, guava, banana, custard apple etc as white things are coolant.
    • In diet have more of milk and milk products likes ghee, buttermilk, makkhan i.e butter.
    • Avoid oily and spicy food esp green chilli, pepper, ginger, garlic.

    In summer season if you don’t follow HEALTH MANTRA and eat lot of spicy food likes raw green chillies in form of chutney, sandwich, pani puri then bleeding starts from fissure and piles.

    How can this bleeding be stopped?

    A simple home remedy is:

    ONION – Roast an onion on the stove with the peels, then remove the peels and consume the onion or have it with curd. This remedy immediately stops bleeding from fissures and piles.

    What dietary changes should be made if you have fissures and/or piles?

    1) Completely eliminate green chilies, pepper, ginger, and garlic from your diet.

    2) Consume a significant amount of buttermilk with both meals.

    3) Eat SURAN vegetable (Elephant yam) at least 2-3 times a week.

    Prior to preparing SURAN vegetable, it is advisable to soak it in buttermilk for approximately one hour, followed by washing it with warm water. This process is recommended due to the presence of a significant amount of calcium oxalates in suran, which can be effectively removed by soaking in buttermilk. Consuming suran in its raw form may result in irritation of the throat and tongue, as well as an increased likelihood of joint pain and kidney stones.

    4. Additionally, it is recommended to avoid consuming green leafy vegetables and salads, as the fibers present in these items can cause friction against pile mass and fissures, thereby exacerbating pain.

    If you are constipated – to relief constipation consume 1 cup milk or 1 cup warm water added with 1 teaspoon of ghee or one teaspoon of almond oil before meals. This relieves constipation and flatus, as well as soothens anal skin and thus eases irritation and burning in anal area.

    1. Every day in the morning and at night consume 1 teaspoon of Triphala powder or 2 tablets of Triphala on empty stomach with warm water.

    All of these home remedies will serve as preventative measures against fissure and piles or will alleviate your symptoms of fissure and piles.
    However, it is still necessary to consult a medical professional to address the underlying cause.

    In Panchakarma, a treatment called Ksharsutra effectively removes piles by severing the pile mass from its base.

    Take advantage of Ayurveda to avoid fissure and piles entirely.

    Additionally, adhere to health mantras and home remedies to prevent and treat fissure and piles. We hope you find our home remedies beneficial.

    Stay connected with us for more home remedies.

    Until then, stay healthy and blessed.

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