आरोग्य मंत्र – १
आजकल की भागमदौडभरी जिंदगी मे सबको बस एक ही समस्या सताती है – एसिडिटी
कम से कम चार मे से एक व्यक्ति यही समस्या लेकर आता है| लेकिन हर एक व्यक्ति के असिडिटी के लक्षण अलग अलग होते है | कोई छाती मे जलन को एसिडिटी कहता है तो कोई पेट दर्द को | इस ‘ एसिडिटी’ शब्द से कई लक्षण जुड़े हुए हमे मिलते है जैसे गॅसेस, पेटदर्द, डकार, जी मचलना, पेट साफ न होना, सिरदर्द आदि
लेकिन ये एसिडिटी असल मे है क्या ?
चलो एक आसान उदाहरण से समझते है ।
- समझलो की चूले पर एक खाली बर्तन रखकर गॅस चालू किया ,बर्तन गरम हो रहा है पर हम उसमे पकाने के लिए कुछ भी नही डाल रहे । तो बर्तन से धूआ निकलने लगेगा और बर्तन जलकर खराब / काला होने लगेगा ।
- फिर काफी देर बाद उसी जलते हुए बर्तन मे अगर हम चावल पकाने डाले तो वह चावल जल जाएंगे या अच्छेसे नही पकेंगे ।
जैसे खाना पकाने के लिए हम अग्नि का इस्तेमाल करते है उसी तरह शरीर में खाना पकाने के लिए जाठराग्नि (पचनअग्नि) होता है । सूरज के अग्नि के साथ अपने शरीर का अग्नि नियंत्रित रहता है । सूर्योदय के साथ जाठराग्नि (पचनअग्नि) बढ़ने लगता है और सूर्यास्त तक थोडा थोडा मंद हो जाता है ।
- सुबह जब जाठराग्नि (पचनअग्नि) प्रज्वलित होता है ( याने अंग्रेजी शास्त्रनुसार पाचक रस पेट मे स्त्रवने लगते है) तब हमे शरीर को खाना देना चाहिए….अगर खाना नहीं खाया तो उदाहरन मे दिए हुए बर्तन की तरह… ये पाचकरस जठर (पेट) के अंदर की मृदु त्वचा को जलाने लगते है और फिर हमे पेट मे दर्द, जलन महसूस होने लगती है, फिर गॅसेस तथा डकार आने लगती है……. और ऐसे नियमित होने लगा तो जैसे वह बर्तन खराब हो जाता वैसे हि जठर (पेट) की अंदर की मृदु त्वचा पर जख्म तथा अल्सर होने लगते है ।
हमारी आदत ऐसी है की जब हमें वक्त मिलता है तब हम खाना खाते है, सुबह की जगह दोपहर और रात को देर से खाना खाते है | तब तक सब पाचकरस स्रवना कम हो गए होते है जाठराग्नि (पचनअग्नि) मंद हो गया होता है……इसलिए देर से खाए हुए अन्न का पचन ठीक से नही होता और फिर पेट भारी लगना, जी मचलना, मलबद्धता आदि होने लगता है.
यही सब पचन असंतुलन संबधित लक्षणो को हम एसिडिटी कहते /मानते है |
तो इस पचन असंतुलन / एसिडीटी पर क्या उपाय है?
उपाय तो बहुत आसान है – समय का पालन
हमे हमेशा कहते है कि “समय पैसा है” पर क्या हमे ये पता है कि समय = आरोग्य है |
हम अपने पैसों का नियोजन ठीक से करते है | काम का योग्य नियोजन करते है |परन्तु ……. खाने के नियोजन के बारे में दुर्लक्ष करते है |
शांति से खाना खाने को ज्यादा समय नहीं लगता…….. सिर्फ १०-१५ मिनिट…. दिन के सिर्फ दो वक्त खाने के लिए निश्चित करना चाहिए … ८ बजे नाश्ता और १२ बजे दोपहर का खाना. लेकीन इससे एसिडीटी कैसे ठिक होगी? एक उदाहरण से समझीए. मानो की आप ८ बजे ऑफिस गए और २-३ बजे तक आपको कोई काम ही नही मिला …. और फिर ३ के बाद आपको बहुत सारा काम दे दिया गया…. तो क्या होगा? जब आप उत्साही , फ्रेश थे तब काम नही था …….. और जब उत्साह कम होने लगा तब काम आ पड़ा …….. तो काम ठीक से नही होगा और काम पूरा करने देरी भी हो जाएगी ।
कुछ इस प्रकारही समय का नियोजन नही किया तो हमारे शरीर का कार्य भी अस्तव्यस्त हो जाता है ।
खाना खाने को ज्यादा समय नही लगता बस दस १० मिनिट नाश्ता और १० मिनिट दोपहर का खाना….. हमने शरीर को खाना देने के बाद शरीर को भी आगे ३ से ४ घंटे उसपे काम करना होता है । इसलिए सुबह ८ बजे नाश्ता दो……….आगे शरीर अपना काम करेगा……… आप अपना काम करो…….. १२ बजे तक शरीर का अन्नपचन काम पूरा हो जाएगा और अन्नसे आपको शरीर मे नई ऊर्जा मिलेगी , आपकी प्रतीकार शक्ति बढ़ेगी, मन और शरीर को glucose / शक्ति मिलने से आपका काम अच्छा और जल्दी होगा फिर १२ बजे शरीर को उसका अगला अन्न दे दो……….इस दौरान शरीर मे फिरसे नए पाचकरस तैयार होकर पाचनकाम के लिए तैयार रहते है । इस खाने का पाचन अच्छे से होता है और किसी भी तरह के असंतुलन और एसिडिटी के लक्षन नही होते ना chest burn ना मलबदधता, ना ulcer
इसलिए योग्य समय पर खा लो क्योकि वक्त पे खाने से पचन अच्छा रहेगा । वक्त के बाद कितना भी पौष्टिक अन्न खाओ उसका पचन ठीक से न होने के कारन शरीर को और मन को प्रसन्नता नहीं मिलेगी, उससे शरीर का पोषण योग्य नही योगा ।
८ – १२ एसिडिटि मंत्र अपनाओ और निरोगी रहो ।