Prajanan प्रजनन -हेल्दी प्रेगनेंसी, हेल्दी बेबी , हेल्थी मदरहूड के लिए पंचकर्म

Dr. Mansi Kirpekar

Dr. Mansi Kirpekar,

Ayurveda Consultant

Professional Qualifications:

Holds a degree of Bachelor of Ayurvedic Medicine and Surgery (B.A.M.S) from Aryangla College, the oldest Ayurvedic medical institution in India, located in Satara, Maharashtra.

Earned a Master of Arts in Sanskrit from Tilak Vidyapeeth in Poona.

Certified in Panchakarma Chikitsa by AYUSH.

Specializes in Panchabhautik Chikitsa, a distinct branch of Ayurveda.

Holds a certificate in Yoga from Yog Vidya Niketan, Santacruz.

Actively involved in the Panchabhautik Ayurveda Forum, participating as a delegate, organizing member, and speaker at numerous national and international conferences.

पंचकर्म पंचकर्म पंचकर्म…. आजकल सब जगह एक ही नाम है पंचकर्म

कोई पंचकर्म का मतलब मसाज समझते हैं तो कोई पंचकर्म को उल्टी और जुलाबवाली दवा कहते हैं।

तो आखिर सही अर्थ में पंचकर्म है क्या ?

चलो जानते हैं आज के हमारे ब्लॉग में पंचकर्म क्या है?

पंचकर्म

पंच याने ५ और कर्म याने क्रिया।

पंचकर्म याने ऐसी पांच क्रियाए जिन से शरीर शुद्धि होती है और शरीर को ताकत मिलती है |

शरीर शुद्धि पंचकर्म मे समावेश होता है।

१. वमन
२. विरेचन
३. बस्ती
४. नस्य
५. रक्तमोक्षण

  • शरीर को ताकत देनेवाले पंचकर्म में समावेश होता है।
    शक्तिवर्धक पंचकर्म

    १. स्नेहन
    २. स्वेदन
    ३. शिरोधारा
    ४. नस्य
    ५. बस्ती

नस्य और बस्ती इन कर्मोका शरीरशुद्धी पंचकर्म और शक्तिवर्धक पंचकर्म इन दोनों मे समावेश होता है क्युकि जिस प्रकार का द्रव्य इन कर्मों में इस्तेमाल होता है (जैसे जिस प्रकार का तेल, घी, काढ़ा ) उस तरह का शरीर पर असर होता है जैसे शक्तिवर्धक द्रव्य का इस्तेमाल बस्ती या नस्य मे किया तो शक्तिवर्धन होता है और अगर शरीरशुद्धी द्रव्य का उपयोग किया तो नस्य और बस्ती से शरीर शुद्धी होती है , इसलिए इन कर्मो का समावेश दोनों में होता है।

पहले शरीरशुद्धि पंचकर्म के बारे में जानते है |

शरीर शुद्धी पंचकर्म –

वमन और विरेचन

कालावधी –

वमन और विरेचन इन पंचकर्म क्रियाओं को १५ दिन का कालावधी लगता है।

शास्त्र –

वमन और विरेचन इन शरीर शुद्धि कर्मोमे शरीर की पचनशक्ती को शरीरशुद्धी के लिए इस्तेमाल किया जाता है इसलिए जिंदा रहने के लिए आवश्यक हो उतना ही अन्न खाना यह मंत्र हमें कम से कम १५ दिन अपनाना पड़ता है। शरीरशुद्धि क्रिया में पचन शक्ति को पचन कर्म से आराम देकर उस पचनशक्ती को शरीर शुद्धि के लिए इस्तेमाल करना यह इसके पीछे का हेतु होता है।


विधी– वमन और विरेचन पंचकर्म को ४ विभागों में विभाजित किया जाता है।
१. स्नेहपान
२. प्रधान कर्म
३. संसर्जन क्रम
४. अपुनर्भव चिकित्सा

१. स्नेहपान

इस विधी मे बढ़ते प्रमाण मे औषधी घी का सेवन करना होता है।

यह विधि ५ से ६ दिन चलती है।

इसमें सुबह खाली पेट औषधी घी का सेवन करना होता है और औषधि घी बढ़ते हुए प्रमाण में दिया जाता है, जैसे पहले दिन ४ चम्मच, दुसरे दिन ६ चम्मच फिर ८, १२, १६ चम्मच इस प्रमाण में औषधि घी को बढ़ाया जाता है। घी खाने के बाद गरम पानी पीते रहकर जब घी की डकार आना बंद हो जाए (मतलब घी हजम हो गया है )उसके बाद भूख लगे तब मूंग दाल की खिचड़ी और प्यास लगे तब गरम पानी पीना होता है।

इस औषधि घी के सेवन से हमारे शरीर का आम (टॉक्सिंस) पतला होता हैं।

उस के बाद स्नेहन यानी मसाज और स्वेदन याने स्टीमबाथ दी जाती है|

स्नेहन और स्वेदन – यहा स्नेहन और स्वेदन का उद्देश शरीर का आम (टॉक्सिक्स) शरीर के मध्य मे लाना होता है| जैसे हम घर की साफ सफाई करने के बाद नीचे गिरा हुआ कचरा इकट्ठा करके फिर बाहर फेकते हैं उसी तरह जब स्नेहपान से शरीर का आम पतला होता है (टॉक्सिन लिक्विफाय होते है) तब स्नेहन और स्वेदन से वह आम शरीर के शाखाओं से मध्य में लाया जाता हैं।

३. संसर्जन क्रम

यह १० दिन से लेकर १५ दिन तक करने का विधि है |

वमन और विरेचन इन प्रधान कर्मो के दौरान सिर्फ मूंग दाल और चावल खाना होता है| मतलब यह विधी उपवास के समान ही हो जाता है| इसलिए जैसे कोई भी उपवास छोड़ते वक्त हम शुरवात में हलके पदार्थ खाना शुरू करते हैं फिर धिरे धिरे हजम करने में भारी पदार्थ खाना शुरु करते है वैसे ही वमन और विरेचन इन प्रधान कर्मो के बाद हम पहले भोजन मे हल्के पदार्थ जैसे लिक्विड याने दाल का पानी, चावल का पानी, चावल और फिर खिचड़ी ऐसे धीरे-धीरे नॉर्मल डाइइट पर आते हैं| इस क्रम को संसर्जन क्रम कहते हैं।
संसर्जन क्रम के बाद आती हैं।

४. अपुनर्भव चिकित्सा

अपुनर्भव मतलब व्याधी फिर से ना हो इसलिए की जाने वाली चिकित्सा ( Preventive treatment) इसमें प्रधान कर्म होने के बाद आगे १५ दिन औषधि और घी दिया जाता हैं जिससे प्रतिकार शक्ति बढ़ती है।

वमन विरेचन कर्म कब करने चाहिए?

निरोगी व्यक्ति ने वसंत ऋतु में यानी लगभग फरवरी-मार्च के दरमियान वमन कर्म और शरद ऋतु में याने लगभग सितंबर – अक्टूबर मे विरेचन कर्म करवाके लेने चाहिए।

बीमार व्यक्ति ने पंचकर्म कब करवाना चाहिए ?

बीमार व्यक्ति ने वैद्य की सलाह लेकर या बीमारीकी गंभीरता को ध्यान मे रखकर साल भर मे एकबार पंचकर्म करवाके लेना चाहिए।

वमन / विरेचन कर्म मे से कौनसा कर्म किसने करवाना चाहिए ?

अनुमान ऐसा होता है कि जिनकी प्रकृति कफ की है और जिनको कफ की बीमारियां है जैसे बार बार सर्दी होना, खासी, अस्थमा, डायबिटीज, थाइरॉइड और अलग-अलग प्रकार के त्वचा रोग जैसे एग्जिमा, सोरियासिस हो उन लोगों को वमन कर्म करवाके लेना चाहिए और जिनकी पित्त की प्रकृति है और जिन्हे पित्त की बीमारीया है जैसे मासिक धर्म की समस्या, माइग्रेन, सिरदर्द, मलबद्धता, एसिडिटी हो उन्हे विरेचन कर्म करवाकर लेना चाहिए।

साल मे कितनी बार पंचकर्म करवा के लेना चाहिए?

जैसे हम साल मे एक बार घर की साफ सफाई करते है उसी प्रकार साल मे एक बार पंचकर्म करवाकर लेना चाहिए।

पंचकर्म के फायदे

१. शरीरशुद्धि होती है |

२. शरीर को ताकत मिलती है।

३. अपुनर्भव चिकित्सा – इस विधि से प्रतिकार शक्ति बढ़ती है।

इस ब्लॉग में हमने वमन और विरेचन के बारे मे जानकारी ली। अगर आपको कोई भी शंका हो तो हमारे

E-MAIL ID – aarogyam.ayurvedic.clinic@gmail.com पर आप हमे संपर्क कर सकते है ।

अगले ब्लॉग मे हम बस्ती कर्म के बारे मे जानेगे।

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